asha workers latest news ऑल इंडिया आशा बहू कार्यकत्री कल्याण सेवा समिति
राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती चंदा यादव की अगुवाई में जंतर मंतर पर विशाल धरना प्रदर्शन बिहार और उत्तर प्रदेश के आशा वर्कर्स ने धरना प्रदर्शन जोरदार तरीके से किया जिस में शामिल लोग पदाधिकारी
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्रीमती उमा शर्मा
राष्ट्रीय महामंत्री श्रीमती माया परमेश्वरी
राष्ट्र कोषाध्यक्ष श्रीमती गीता सोनी
मीडिया प्रभारी श्रीमती मेहरून किदवाई
राष्ट्रीय संरक्षक शमशाद अली
राष्ट्रीय कार्यकारिणी श्रीमती राजकुमारी देवी परवाह चतुर्वेदी शशि यादव, मिथिलेश सिंह
जिन की मुख्य मांगे केंद्र सरकार से थी जिन्होंने जंतर-मंतर पार्लियामेंट के सामने अपना विरोध प्रदर्शन किया
अपनी फरियाद लेकर पहुंचे पार्लियामेंट में इस प्रकार है
विषय हम आशाओं के मानदेय/वेतन के दिन कब आयेंगे, जो भारत सरकार के स्वास्थ्य विभाग की एक महत्वपूर्ण कड़ी है, जो आपके महत्वपूर्ण स्वास्थ्य विभाग की योजनाओं को घर-घर तक हर अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाती है। भारत का हर गांव, जिसके गवाह आपके सरकारी आंकड़े हैं
सविनय निवेदन है कि जब से आपके स्वास्थ्य विभाग द्वारा आशा कार्यकर्ता/आशा संगिनी का चयन किया गया है, आपका सरकारी डाटा इस बात का साक्षी है कि जन्म-मृत्यु दर में कमी, जच्चा-बच्चा को सुरक्षित प्रसव कराने में सफलता एवं शत-प्रतिशत टीकाकरण हो रहा है। हासिल किया जा रहा है। लेकिन आपके द्वारा भारत की आशा कार्यकर्ताओं और महिलाओं को एक गुलाम मजदूर की तरह भी मजदूरी नहीं दी जाती है, जो खुद आशा के बुरे दिनों को छोड़कर कभी भी अच्छे दिन नहीं ला पाती है, जो बहुत ही शर्म की बात है,
सृजन का। यदि हम अपने देश की रक्षा करते हैं तो हम और आप भारत के लोगों के अच्छे दिन बनाने में सक्षम हैं। हम आशा कार्यकर्ताओं को सुरक्षित प्रसव के बाद 05 वर्ष तक गर्भ से बाहर आने तक गंभीर बीमारियों से बचाते हैं और इतना ही नहीं प्रधान, विधायक और सांसद भी सामाजिक कार्यकर्ता हैं, इसलिए उन्हें मानदेय दिया जाता है। आशा एक सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं और आने वाली हैं
वे भविष्य के रक्षक हैं, तो उन्हें मानदेय क्यों नहीं दिया जाता? यदि किसी आशा बहन की अचानक मृत्यु हो जाती है तो स्वास्थ्य विभाग या प्रशासन की ओर से कोई भी उसके परिवार और बच्चों को भरण-पोषण के लिए आर्थिक मदद नहीं देता, कोई उसका हालचाल पूछने नहीं जाता। न तो कोई स्वास्थ्य बीमा है और न ही सरकार की तरफ से आर्थिक मदद। अगर हम उम्मीद करते हैं कि कम कमीशन के रूप में ऊंट के मुंह में जीरा ही दिया जाएगा तो सरकार की यह दोहरी नीति भारत की महिलाओं पर बुरे दिनों का स्पष्ट उदाहरण है। हमारी मुख्य मांगें इस प्रकार हैं:-
1. आशा एवं आशा संगिनी को राज्य कर्मचारी का दर्जा देते हुए आशा को न्यूनतम रू0 18000/- एवं आशा संगिनी को न्यूनतम रू0 24000/- प्रतिमाह दिया जाये।
2. सामाजिक सुरक्षा के क्षेत्र में आशा और आशा संगिनी लेकर ईपीएफ (कर्मचारी भविष्य निधि) और (कर्मचारी राज्य बीमा) का लाभ दिया जाए।
3. आशा और आशा के साथी की आकस्मिक मृत्यु होने की स्थिति में, 10,00,000/- (दस लाख) का मुआवजा और घर के एक सदस्य को नौकरी प्रदान की जानी चाहिए।
4. यदि कोई राष्ट्रीय कार्यक्रम चलाया जाता है तो एक दिन का मानदेय एक मजदूर की न्यूनतम मजदूरी से कम नहीं होना चाहिए।
अतः आपसे विनम्र निवेदन है श्रीमान कि भारत के सबसे छोटे और निर्माण की निम्नतम आशाओं को वेतन देकर अच्छे दिन की शुरुआत करने का प्रयास करें।
आशा कार्यकर्ता: गांवों में स्वास्थ्य सेवाओं का संवालंबन करते हुए
भारत देश में स्वास्थ्य सेवाओं को गांवों तक पहुंचाने का एक महत्वपूर्ण काम आशा कार्यकर्ताओं के द्वारा किया जाता है। भारत सरकार ने आशा कार्यकर्ताओं को स्वास्थ्य सेवाओं के लिए नियुक्त किया है जो अपने गांव के लोगों के लिए निशुल्क सेवाएं प्रदान करते हैं। वे आदर्श ग्राम स्वास्थ्य सेवक के रूप में भी जाने जाते है
आशा कार्यकर्ता का काम है कि वे अपने गांव में स्वास्थ्य सेवाओं की व्यापक जानकारी दें। उन्हें अपने क्षेत्र के लोगों की स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में बताना होता है और उन्हें सही सलाह देना होता है। वे अपने क्षेत्र के लोगों को स्वास्थ्य संबंधी संदेशों और उपयोगी सुझावों के बारे में बताते हैं।
आशा कार्यकर्ता ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं और वहां की स्थानीय भाषा को जानते हैं। वे अपने क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं के लिए अधिकृत होते हैं।